
चिंता को सकारात्मक ऊर्जा में बदलें
रोहित कौशिक

लॉकडाउन के दौरान देश के अनेक हिस्सों से अवसाद के कारण आत्महत्याओं की खबरें सामने आईं। दरअसल, नकारात्मक विचार एक समय बाद हमें अपनी गिरफ्त में ले लेते हैं और हम अवसाद की स्थिति में पहुंच जाते हैं। हमने साहिर लुधियानवी का गीत सुना है ‘मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया/हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया।’ हालांकि, हर फिक्र या चिंता को धुएं में उड़ाना इतना आसान नहीं है, फिर भी अगर यह संभव हो जाए तो जीवन जीने का मजा दोगुना हो जाता है। जीवन है तो दु:ख-सुख स्वाभाविक हैं। जीवन है तो तनाव या चिंता भी होगी ही। बुजुर्ग कहते हैं कि चिंता मत करो, सब कुछ ठीक हो जाएगा। हम भी यही सोचते हैं कि अब हम चिंता नहीं करेंगे। लेकिन चिंता कहां मानती है। तपाक से आकर हमारे दिलो-दिमाग में बैठ जाती है और हमारा सारा तंत्र जकड़ लेती है। बचपन में जब परीक्षा में कोई पेपर खराब हो जाता था तो माता-पिता कहते थे कि चिंता मत करो अब अगले पेपर की तैयारी करो। शिक्षक और माता-पिता भी चिंता से दूर रहने और सहज मनोदशा में परीक्षा देने का संदेश देते रहते थे। थोड़ा बड़े हुए तो नौकरी, व्यवसाय और घर-गृहस्थी की चिंताएं शुरू हुईं। हम सोचते हैं कि इससे अच्छा तो बचपन ही था जब कोई चिंता नहीं थी। हालांकि, बच्चों को अपने स्तर की चिंता है, जैसे होमवर्क की चिंता, स्कूल जाने की चिंता आदि।
अपने जीवन में मौज-मस्ती को स्थान देने वाला युवा भी कहां चिंतामुक्त रह पाता है। क्या आपने लाखों के पैकेज पर काम करने वाले युवाओं के चेहरों को पढ़ा है? क्या आपने इन युवाओं की मुस्कान को गौर से देखा है? क्या आपने इनकी चमक-दमक के पीछे छिपी निराशा देखी है? ध्यान से देखें तो आपको एक ऐसी स्थिति दिखायी देगी, जो सुकून नहीं देती। एक रिपोर्ट बताती है कि बहुराष्ट्रीय कम्पनियों में काम करने वाले अधिकतर युवा कार्यस्थल पर किसी न किसी रूप से भारी दबाव झेल रहे हैं। इसी कारण उनमें चिड़चिड़ापन और अवसाद जैसी समस्याएं पैदा हो रही हैं। मगर इस दौर का युवा भी बार-बार चिंता को पटकनी देने के नए-नए तरीके ढूंढ़ रहा है और चिंता को बार-बार मुंह की खानी पड़ रही है। दरअसल, हम सब मानवीय प्रवृत्ति के कारण चिंता से बच नहीं सकते हैं। एक चिंता खत्म होती है तो दूसरी चिंता हमारी देहरी पर आ खड़ी होती है। लेकिन नकारात्मक पहलू के साथ चिंता का सकारात्मक पहलू भी है।
चिंता के बिना हमारा कार्य समय से संपन्न नहीं हो पाता है। यदि हमें परीक्षा की चिंता न हो तो हम अपनी पढ़ाई में ढिलाई बरतने लगते हैं और परीक्षा की तैयारी ठीक से नहीं हो पाती। इतवार को स्कूल और कार्यालय जाने की चिंता न होने के कारण हम देर तक सोते रहते हैं। चिंता लेने वाले बड़े-बुजुर्ग यदि शादी-ब्याह में काम निपटाने के लिए हल्ला न मचाएं तो शादी की रस्म समय से पूरी नहीं हो पाती है। एक सीमा तक चिंता करना भी जरूरी है। चिंता का यह सकारात्मक पहलू हमारे काम को पूरी दक्षता एवं समय से संपन्न कराने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। अब यह हमारे ऊपर है कि हम चिंता का नकारात्मक पहलू चुनते हैं या सकारात्मक पहलू। दरअसल, चिंता का नकारात्मक पहलू या सकारात्मक पहलू चुनना भी दरअसल हमारे बस में नहीं है। यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में चिंता हमारे न चाहने पर भी जबरदस्ती हमारे दिलो-दिमाग के दरवाजे खुलवाती है। चिंता जिद्दीपन दिखाते हुए हमारी रग-रग में घूमकर दबाव डालती है। तब जाकर डॉक्टर हमें कहते हैं कि चिंता न करें, आपको ब्लड प्रेशर हो गया है। ऐसे में हम सोचते हैं कि हमने तो चिंता की ही नहीं फिर यह अपने आप हमारे पल्ले कैसे पड़ गई। दरअसल, चिंता को ‘चिता’ समान कहा गया है। चिंता हमें अंदर ही अंदर खा जाती है और पनपने का मौका नहीं देती। हर व्यक्ति का संघर्ष अलग होता है। चिंता की तीव्रता व्यक्ति के संघर्ष पर भी निर्भर करती है। संघर्षशील व्यक्ति अनेक समस्याओं से दो-चार होता हुआ अपनी जिंदगी व्यतीत करता है। वह कई स्तरों पर कई परेशानियों से जूझ रहा होता है। उसकी चिंताएं भी ज्यादा होती हैं। इसलिए चिंता हमारे जीवन का हिस्सा है। यह जीवन को कई तरह से प्रभावित करती है। कभी ऐसा भी लगता है कि चिंता और जीवन समानान्तर रूप से चल रहे हैं। चिंता का सम्बन्ध मूल रूप से हमारे दिमाग से है। दिमागी हलचल का असर हमारे शरीर पर पड़ता है। इसलिए जब चिंता होती है तो वह हमारे चेहरे और शरीर की हरकतों से दिखाई देने लगती है। चिंता करना व्यक्ति की प्रवृत्ति पर भी निर्भर करता है। कोई व्यक्ति अधिक चिंता करता है तो कोई कम चिंता करता है। लेकिन कभी-कभी हम चिंता को अपनी आदत बना लेते हैं।
आज तनाव या चिंता दूर करने के लिए जगह-जगह पर योग और ध्यान की कक्षाएं हो रही हैं, सेमिनार हो रहे हैं, नई-नई किताबें आ रही हैं। लेकिन चिंता कम नहीं हो रही है। और जब यह आ ही जाए तो इसे बेफिक्री के धुएं में उड़ाने का अभ्यास करें। जरूरी बात यह है कि हम तनाव या चिंता को अपनी प्रवृत्ति या आदत न बनने दें। जिंदगी का सत्व ग्रहण करने के लिए यह जरूरी है कि हम चिंतामुक्त हों। तनावरहित जीवन के माध्यम से ही हम सच्ची खुशी प्राप्त कर सकते हैं। आइए, हम सब कोशिश करें कि चिंता सर्दी की वह गुनगुनी धूप बने जो हमारे जरूरी काम निपटाने के लिए रोज हमारे आंगन में उतरती है।
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