गोधन न्याय योजना अच्छी, पर राह कच्ची

शशांक शर्मा
छत्तीसगढ़ में भूपेश सरकार ने महत्वाकांक्षी गोधन न्याय योजना की घोषणा की है जिसे हरेली के पावन दिवस से प्रारंभ की जाएगी। योजना के संबंध में दिशानिर्देश भी शासन ने जारी कर दिया है। यह देश में गौवंश के संरक्षण और पशुपालकों की सहायता के लिए अच्छी सोच का परिणाम है। लेकिन जैस शासकीय योजनाओं के साथ अक्सर होता है, नौकरशाही की रुचि नहीं होने और जल्दी परिणाम की उम्मीद में जब तेज भागने लगते हैं तो योजना हांफने लगती है, गोधन योजना के साथ इस परिणाम की संभावना अधिक है। इसलिए सरकार को इस योजना को लागू करने में और अच्छा परिणाम पाने के लिए थोड़ा धीरज रखने की जरूरत है।
गोबर की सरकारी खरीद करने वाला छत्तीसगढ़ देश का पहला राज्य है, इसलिए बिना किसी अनुभव के योजना को प्रारंभ करना मुश्किल होता है। इस बात में कोई शक नहीं है कि गाय के गोबर और मूत्र से अनेक उत्पाद बनाकर लाभकारी व्यवसाय किए का सकते हैं। दूसरी ओर छत्तीसगढ़ सहित पूरे देश में आवारा घूमने वाली गाय बड़ी समस्या है और ऐसा इसलिए हो रहा है कि दूध नहीं दे पा रही गायों को मालिक बोझ समझ कर खुला छोड़ देते हैं। गोधन न्याय योजना से ऐसी गायों को वापस मालिक अपने घरों में रखेंगे, ऐसी उम्मीद सरकार को है। गोबर और गोमूत्र के व्यवसिक महत्व को ध्यान में रखकर पिछले बजट में केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय कामधेनु आयोग का गठन किया है जिसमें 500 करोड़ रुपए की राशि दी गई है। इस आयोग का उद्देश्य भी गोबर और गोमूत्र आधारित उत्पादन को बढ़ावा देना है।
छत्तीसगढ़ में योजना की घोषणा के बाद शीघ्रता से लागू करने की तिथि व 2 रूपए प्रति किलग्राम की दर से गोबर खरीदने की कीमत भी तय कर दी गई है। योजना की शुरूआत हरेली त्यौहार, 20 जुलाई से हो रही है। सरकार की इस योजना का सही तरीके से क्रियान्वयन हो जाए तो प्रदेश के गौपालकों के साथ गांवों के स्व सहायता समूह से जुड़ी महिलाएं व पुरूषों को भी रोजगार मिलेगा, आय का जरिया बनेगा। साथ ही वन और उद्यानिकी विभाग अपनी नर्सरी के लिए करोड़ों रूपए की वर्मीकम्पोस्ट की खरीद करते हैं, इस राशि का भुगतान स्व सहायता समूहों को होगा। इस योजना के उद्देश्य के अनुसार वर्मीकम्पोस्ट का ख