क्षुद्रग्रहों के टकराव से पृथ्वी का जलवायु परिवर्तन
मुकुल व्यास
वैज्ञानिकों का ख्याल है कि 12800 वर्ष पहले एक विशाल क्षुद्रग्रह पृथ्वी से टकराया था, जिसके बाद जलवायु परिवर्तन हुआ और कई प्रजातियां लुप्त हो गईं। वैज्ञानिकों ने यह अनुमान दक्षिण अफ्रीका में मिले एक नए प्रमाण के आधार पर लगाया है। उन्होंने वंडरक्रेटर नामक स्थान की प्राचीन मिट्टी का विश्लेषण किया और वहां प्लेटिनम के उच्च स्तर का पता लगाया। उन्होंने कहा कि इससे 'यंगर ड्रायास इंपेक्ट अवधारणा को समर्थन मिलता है। इस अवधारणा के अनुसार एक टूटते हुए क्षुद्रग्रह के पृथ्वी से टकराने के बाद पृथ्वी पर लघु हिमयुग का दौर शुरू हो गया था। क्षुद्रग्रह के टुकड़े उत्तर और दक्षिण अमेरिका,यूरोप और पश्चिमी एशिया में गिरे थे।
इन प्रहारों के बाद धूल और रेत की पतली परत ने 5 करोड़ वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को ढक दिया था। इस परत में प्लेटिनम और सूक्ष्म हीरे शामिल थे। विशेषज्ञों का कहना है कि इस घटना के बाद बड़े पैमाने पर जंगलों में आग लगी, सर्दियों का दौर शुरू हुआ और लंबे समय तक जलवायु में बदलाव आते रहे तथा प्लीस्टोसीन युग के बड़े-बड़े जीव विलुप्त हो गए। अनेक वैज्ञानिकों का मानना है कि इस हिमयुग से मानव आबादियां अस्तव्यस्त हो गईं। इसके अलावा दर्जनों स्तनपायी प्रजातियां लुप्त हो गईं, जिनमें मैमथ (हाथियों की एक प्रजाति) और विशाल जीव शामिल हैं। वैज्ञानिक यह मानते हैं कि दुनिया के विभिन्न हिस्सों में प्राचीन मिट्टी के नमूनों में प्लेटिनम के स्तर में वृद्धि इस बात का प्रमाण है कि क्षुद्रग्रह के टुकड़े पृथ्वी से टकराए थे। उल्कापिंडों में प्लेटिनम का अंश काफी अधिक होता है। दक्षिण अफ्रीका में प्रिटोरिया के निकट लिंपोपो प्रांत में वंडरक्रेटर के अलावा दुनिया में 30 और स्थलों पर प्लेटिनम के स्तर में वृद्धि देखी गई है। ऐसे क्षेत्र ज्यादातर उत्तरी गोलार्द्ध में हैं।
दक्षिण अफ्रीका में जोहानेसबर्ग स्थित विटवाटरसरंड यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों की खोज से इस सिद्धांत को बल मिलता है कि उल्कापिंड के पृथ्वी से टकराने के विश्वव्यापी प्रभाव हुए थे। अभी इस बात के प्रमाण सिर्फ उत्तरी गोलार्द्ध में ही दर्ज थे। विटवाटरसरंड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक फ्रांसिस ठाकरे का कहना है कि दक्षिण अफ्रीका में देखी गई प्लेटिनम के लेवल में वृद्धि यह साबित करती है कि दुनिया भर में अनेक बड़े जानवरों की विलुप्ति उल्कापिंड के एक या अनेक प्रहारों की वजह से हुई थी। यंगर ड्रायास के समय उत्तर अमेरिका, दक्षिण अमेरिका और यूरोप के अनेक बड़े जानवरों का सफाया हो गया था। इसी अवधि में दक्षिण अफ्रीका में विशाल जेबरा और विशालकाय जंगली भैंस सहित बड़े जानवरों की कुछ प्रजातियां लुप्त हो गईं।
डॉ.ठाकरे ने कहा कि हमारी खोज 'यंगर ड्रायास इंपेक्ट अवधारणा का समर्थन करती है। हमें इस विचार पर गहराई से अध्ययन करना चाहिए कि पृथ्वी पर किसी कोने में गिरने वाले क्षुद्रग्रह ने विश्वव्यापी स्तर पर जलवायु परिवर्तन किया होगा। ठाकरे ने कहा कि उत्तर अमेरिका के क्लोविस लोगों द्वारा पाषाण औजारों के इस्तेमाल और दक्षिण अफ्रीकी आबादियों द्वारा प्रयुक्त पाषाण औजारों के विकास में अचानक अवरोध उत्पन्न हो गया था। यह इस बात का संकेत है कि किसी क्षुद्रग्रह या उल्कापिंड के प्रहार ने पूरी दुनिया को प्रभावित किया होगा। अतीत में इसी तरह की दूसरी खगोलीय घटनाओं ने पृथ्वी के जीवन को प्रभावित किया है। करीब 6.6 करोड़ वर्ष पहले एक दस किलोमीटर चौड़े क्षुद्रग्रह या उल्कापिंड ने मैक्सिको के यूकाटन प्रायद्वीप पर प्रहार किया था। इस प्रहार के बाद पृथ्वी से डायनासोर प्रजातियों का सफाया हो गया था। भविष्य में किसी विनाशकारी क्षुद्रग्रह के पृथ्वी से टकराने की संभावना बहुत कम है लेकिन यह खतरा हकीकत में भी बदल सकता है। खतरनाक क्षुद्रग्रह और धूमकेतु बहुत कम पृथ्वी से टकराते हैँ लेकिन यह खतरा हमेशा मौजूद रहता है।
कुछ मौकों पर धूमकेतु भी पृथ्वी के बहुत नजदीक पहुंच गए थे। वर्ष 1996 में पृथ्वी एक धूमकेतु से बाल-बाल बच गई थी जबकि 2014 में एक धूमकेतु हमारे पड़ोस में मंगल ग्रह तक आ गया था। मुश्किल यह है कि धूमकेतुओं का पता तब चलता है जब हमारे पास उनकी दिशा बदलने के लिए मिशन छोडऩे का वक्त नहीं होता। पृथ्वी के हाल के इतिहास में खगोलीय पिंडों से दो विनाशकारी घटनाएं हो चुकी हैं। इनमें से पहली घटना 1908 में साइबेरिया के तुंगुस्का में हुई थी और दूसरी घटना 2013 में चेल्याबिंस्क में हुई। 1908 में पोडकामेन्नया तुंगुस्का नदी पर एक 40 मीटर चौड़ी या उससे भी छोटी शिला का विस्फोट हुआ था, जिससे 2000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला जंगल धराशायी हो गया था। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि पृथ्वी क्षुद्रग्रह के प्रहार को झेलने के लिए तैयार नहीं है और यदि ऐसा खगोलीय पिंड पृथ्वी की तरफ बढ़ा तो हम उस वक्त कुछ नहीं कर पाएंगे। पृथ्वी के समीपवर्ती पिंडों (नियर-अर्थ ऑब्जेट्स ) का पता लगाने में वैज्ञानिकों को काफी सफलता मिली है लेकिन अभी बहुत कुछ करना बाकी है।
अभी हम इस खतरे से निपटने के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं हैं। दुनिया भर में विभिन्न अंतरिक्ष एजेंसियां खतरनाक पिंडों पर नजर रख रही हैं। यूरोपीय स्पेस एजेंसी (ईएसए) 2019 एसयू3 नामक क्षुद्रग्रह पर खास नजर रख रही है जो 70 साल बाद, 16 सितंबर 2084 को पृथ्वी से टकरा सकता है। इस अंतरिक्ष शिला को ईएसए ने हाल ही में अपनी 'रिस्क लिस्ट में शामिल किया है। ईएसए का कहना है कि 2019 एसयू3 क्षुद्रग्रह 2084 में पृथ्वी के बगल से गुजरेगा। इसके पृथ्वी के 0.00079 एस्ट्रोनोमिकल यूनिट्स अथवा करीब 112 650 किलोमीटर के दायरे में आने की संभावना है। नासा के अनुसार 0.05 एस्ट्रोनोमिकल यूनिट्स में आने वाले तथा 140 मीटर से अधिक व्यास वाले पिंड खतरनाक माने जाते हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक नियर अर्थ ऑब्जेक्ट्स की संख्या 18000 से अधिक है।