कृषि अर्थव्यवस्था में अभूतपूर्व सुधार
0-सबसे ज्यादा लाभ लघु और सीमान्त किसानों को

डॉ. सुशील त्रिवेदी
भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान 16.5 प्रतिशत है । भारत की 132 करोड़ आबादी में 70 करोड़ आबादी अपनी आजीविका के लिए प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर आश्रित हैं । देश में कुल किसानों में से 82 प्रतिशत लघु और सीमान्त किसान हैं । इन लघु किसानों के पास 2 हेक्टेयर से भी कम और सीमान्त किसानों के पास 1 हेक्टेयर से भी कम जमीन हैं । इस तरह भारत के अधिकांश किसान अपने खेतों के छोटे-छोटे आकार, बाजार की अनिश्चितता, बिचौलियों के कुचक्र और राज्यों के विपणन संबंधी कानूनों के मकडज़ाल के कारण गरीबी से उबर नहीं पाते हैं । यह उल्लेखनीय है कि भारत में प्रति व्यक्ति आय रूपये 1,35,048 है जबकि बेहद आर्थिक पिछड़ेपन को दर्शाते हुए भारत के किसान की औसत वार्षिक आय रूपये 77,976 है । मोदी सरकार ने किसानों की औसत आय को वर्ष 2022 तक दोगुना करने का अपना लक्ष्य बनाया है । इसी क्रम में भारत सरकार ने हाल ही में ऐतिहासिक महत्व के तीन अध्यादेश जारी किए हैं जिससे किसानों को उनकी उपज का अधिकतम लाभ मिल सकेगा और भारत की कृषि अर्थ व्यवस्था का रूपान्तरण होगा ।
भारत सरकार द्वारा जारी पहला अध्यादेश आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 में संशोधन करने से संबधित है । इस अध्यादेश को जारी कर खाद्य उत्पादों पर लागू संग्रहण की मौजूदा बाध्यताओं को हटाया गया है । इस संशोधन के बाद खाद्यान्न, दलहन, तिलहन, खाद्य तेलों, प्याज और आलू जैसी वस्तुओं को आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 में शामिल वस्तुओं की सूची से बाहर कर दिया गया है । अब व्यापारी आवश्यकतानुसार इन वस्तुओं का संग्रहण कर सकेगा। अब यह संभावना है कि कृषि के क्षेत्र में निजी निवेश बढ़ जाएगा और विदेशी निवेष भी हो सकेगा । इससे नए, बड़े और बेहतर तकनीक वाले कोल्ड स्टोरेज का निर्माण हो सकेगां और खाद्य प्रदाय की श्रृंखला का आधुनिकीकरण होगा।
यह उल्लेखनीय है कि कृषि उत्पादों की जमाखोरी रोकने के लिए आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 तब बना था जब कृषि उत्पाद की कमी थी। हरित क्रांति के बाद से भारत में कृषि उत्पादन बढ़ा है किन्तु इस अधिनियम के कड़े प्रावधानों के कारण कृषि उत्पाद का उचित भंडारण नहीं किया जा सकता । इसी वजह से जल्दी खराब होने वाले कृषि उत्पाद की बर्बादी होती है और तत्काल उत्पाद बेचने को मजबूर किसानों को कम मूल्य मिलता है । बहरहाल, इस नए अध्यादेश के जारी हो जाने के बाद इस स्थिति में किसानो के पक्ष में बड़ा परिवर्तन आएगा ।
दूसरा अध्यादेश ‘‘कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) मूल्य आश्वासन और कृशि सेवाओं पर करार अध्यादेश‘‘ है । इसके द्वारा कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को कानूनी मान्यता दी गई है । अब भूमि स्वामी अपनी जमीन को किसी को भी पट्टे पर अथवा किसी कंपनी को अनुबंध के आधार पर ठेकाधारित खेती करने के लिए स्वतंत्र होंगे । यह विदित है कि देश में अधिकांश किसान लघु और सीमान्त किसान की श्रेणी में आते हैं जिनके लिए खेती लाभदायी नहीं हो पाती । ऐसे किसानों को न तो उन्हें उन्नत कृषि प्रणाली के प्रयोग की सुविधा मिलती है, न सिंचाई और न ऋण संबंधी सुविधाओं का अधिकतम लाभ । अब इस अध्यादेश के जारी होने से सबसे अधिक लाभ लघु और सीमान्त किसानों को होगा जो अपनी जमीन से कॉन्ट्रैक्ट के जरिए बेहतर लाभ ले सकेंगे ।
तीसरा अध्यादेश है कृषि उत्पाद व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश । इसके द्वारा किसान अपनी उपज कहीं भी बेचने के लिए स्वतंत्र हो गए हैं । इस अध्यादेश से न केवल खेती करने वाले बल्कि पशुपालक, मुर्गीपा