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कोरोना योद्धाओं की बेकद्री


ऐसे वक्त में जब दुश्मन अदृश्य है और उससे लडऩे का कोई कारगर हथियार भी नहीं है, अपनी जान का जोखिम उठाकर जो चिकित्सक और चिकित्साकर्मी मरीजों के उपचार में लगे हैं, वे सामान्य समय से अधिक वेतन-सुविधाओं के हकदार हैं। इसके बावजूद यदि उन्हें अपने वेतन-भत्तों और सुविधाओं के लिए आवाज उठानी पड़ रही है तो निश्चित रूप से यह विचलित करने वाली बात है। गाहे-बगाहे देश के विभिन्न भागों से डॉक्टर-नर्स व अन्य चिकित्सा स्टॉफ हाथ में मांगों की तख्तियां पकड़े नजर आते हैं तो मन खिन्न होता है। क्या हमारा तंत्र इतना संवेदनहीन हो गया है कि विश्वव्यापी आपदा में घर-परिवार छोडक़र सेवा में जुटे लोगों का हम ख्याल नहीं रख पा रहे हैं। उससे भी ज्यादा दुखद यह कि वेतन-भत्तों के समय से भुगतान के लिये डॉक्टरों-चिकित्साकर्मियों को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा। वहीं सुप्रीम कोर्ट को सरकारों को अपने दायित्वों का अहसास कराना पड़ा और आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत कार्रवाई करने को कहना पड़ा। यह विडंबना ही है कि सरकारी चिकित्सा सेवाएं कभी भी सत्ताधीशों की प्राथमिकता नहीं रही। पूरा चिकित्सातंत्र संसाधनों के अभाव में जूझता रहा है। उस पर साधनविहीन तबके के मरीजों का दबाव लगातार बढ़ता रहा है। इसके बावजूद इस महामारी में सरकारी चिकित्सा तंत्र ने जो भूमिका निभाई है, उससे गरीब व साधनविहीन तबके को बड़ा सहारा मिला है। अन्यथा निजी चिकित्सातंत्र सिर्फ मरीजों के दोहन में ही लगा रहा। इन परिस्थितियों में भी हम यदि चिकित्साकर्मियों की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पा रहे हैं, तो यह दुखद ही है। केंद्र को चाहिए कि वह राज्य सरकारों को बाध्य करे कि वे इन कोरोना योद्धाओं के वेतन तथा भत्ते प्राथमिकता के आधार पर देना सुनिश्चित करें, जिससे वे इस युद्ध में अधिक उत्साह से कार्य कर सकें। साथ ही यदि किसी स्तर पर मरीजों के उपचार में कोताही बरती जा रही है तो उसमें भी जवाबदेही तय की जाये।

निस्संदेह, यदि कुछ राज्यों में चिकित्साकर्मियों के वेतन-भत्तों के समय से न मिलने की बाबत शिकायतें आ रही हैं, तो कहीं न कहीं केंद्र व राज्यों में तालमेल की कमी है। केंद्र को राज्यों पर दबाव बनाकर चिकित्सकों व कर्मियों की दिक्कतों का समय रहते निदान करना चाहिए। विडंबना है कि चिकित्साकर्मियों के वेतन आदि की समस्या की शिकायत उन संपन्न राज्यों से आ रही है, जिनसे इस मुश्किल वक्त में मिसाल पेश?करने की उम्मीद थी। खासकर कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य महाराष्ट्र और पंजाब तथा कर्नाटक से। शिकायतें ड्यूटी के दौरान बाहर जाने पर मिलने वाली सुविधाओं को लेकर भी हैं। शिकायत यह भी है कि कोरोना मरीजों के उपचार के दौरान ड्यूटी के बाद चिकित्साकर्मियों को जो क्वारंटीन करने का प्रावधान है, उसमें भी कई जगह चिकित्साकमियों की छुट्टी काटने के आरोप लगे हैं। यह देखना जरूरी है कि ऐसा संवेदनहीन व्यवहार किस स्तर पर हो रहा है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इस महामारी से लड़ाई में हमारे चिकित्सक और चिकित्साकर्मी उस समय भी डटकर खड़े रहे जब उनके पास पर्याप्त पीपीए किट व मास्क तक नहीं थे।?उनकी अपनी जान को भी खतरा था।?उनके भी परिवार हैं, उन्हें संक्रमण की वजह से उनसे दूर रहना पड़ा। एक समय था जब हमने इन योद्धाओं सम्मान में ताली भी बजायी और थाली भी। उनके सम्मान में जहाज भी उड़ाये और हेलिकॉप्टरों से फूल?भी बरसाये। अब जब देश में संक्रमितों का आंकड़ा 18 लाख तक जा पहुंचा है और रोज पचास हजार से ज्यादा संक्रमित सामने आ रहे हैं, तो चिकित्साकर्मियों की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है। ऐसे में हमारा भी नैतिक दायित्व है कि वे दुखी मन से लडऩे वाले सैनिक न बनें। हम न भूलें कि सौ से अधिक चिकित्सकों ने इस लड़ाई में बलिदान दिया है। एक बड़ी संख्या उन योद्धाओं की भी है जो स्वस्थ होकर फिर से कोरोना के खिलाफ लड़ाई में शामिल हुए हैं।


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