कोरोना दौर का फिल्मी रोमांस
प्रदीप कुमार राय
लॉकडाउन खुलने का मतलब यह नहीं है कि अब सब खुल्लम-खुल्ला है। यानी अनलॉक में कोई यह न सोचे, मैं चाहे मास्क न पहनूं, सामाजिक दूरी न रखूं, हाथ न धोऊं, मेरी मर्जीज् मैं कोरोना से लिपट जाऊं मेरी मर्जी। इसलिए सरकार ने अनलॉक में भी पहले की तरह एहतियात रखने की अपील जनता से की है। सब विभागों और व्यावसायिक संस्थानों में तो ये बातें लागू हो सकती हैं। चुनौती यह है कि इन्हीं शर्तों के साथ महाराष्ट्र सरकार ने फिल्मों की शूटिंग खोलने की इजाजत दी है। शूटिंग के दौरान सामाजिक दूरी, उपकरणों की सेनिटाइजिंग, भीड़ न रखने आदि समेत करीब 16 शर्तों की सूची फिल्म प्रोड्यूसरों को हाथ में उठाए घूमनी होगी।
‘आ गले लग जा’ के बिना बात न करने वाली फिल्मी दुनिया में अमुक शर्तों में पहले जैसी शूटिंग संभव नहीं। ‘दिल दियां गल्लां करांगें नाल नाल वैकेज्’ यह गीत गाने वाली इंडस्ट्री को कहना पड़ेगा ‘दिल दियां गल्लां करांगे तीन मीटर दी दूरी ते वैके।’ नई व्यवस्था में यहां डांस पे चांस मारने का तरीका बदलना पड़ेगा। शर्ते मानेंगे तो हीरो-हीरोइन एक-दूसरे से कई मीटर दूर होकर डांस करेंगे, दोनों के चेहरे पर मास्क होंगे, कैमरे के समक्ष गाना शुरू होते ही दोनों हेंड सेनेटाइजर लगाएंगे। पास आकर एक-दूसरे की आंखों में झांकने का तो सवाल ही नहीं। हर हीरो, हीरोइन सहयोगी डांसरों के बिना ‘एकला नाचो रे’ के सिद्धांत का पालन करेंगे।
बरसों से बिछड़े हुओं की कोई कहानी नहीं चलेगी क्योंकि उसमें कसकर गले मिलने का लफड़ा है। ऐसी कहानी लिखने वाले चाहिए जो दूरी में सारे सीन करा दें। अब प्रश्न है कि विलेन की पिटाई हीरो तीन मीटर दूर से कैसे करेगा। इसके लिए प्राचीन भारत की परंपरा से मदद लेकर दोनों के हाथों में धनुष और गदा थमा दिए जाएं। यह अच्छा भी लगेगा। इससे भारत की प्राचीन संस्कृति का गौरव बढ़ेगा और फिल्मों के पर्दे पर क्रूर हिंसा मर्यादित युद्ध में बदल जाएगी।
लेकिन यह सब तभी हो पाएगा जब फिल्म निर्माताओं के साथ दर्शक भी नई सोच के बन जाएं। दर्शक ऐसा सोचना बंद करें कि हीरो-हीरोइन का मतलब हाथ में हाथ पकड़ डांस करना है। अगर ऐसा नजरिया बनाएंगे कि प्यार आत्मा का होता है, शरीर दूरी पर हों तब भी एक ही होंगे, तो सामाजिक दूरी वाली फिल्में भी कामयाब होंगी। दर्शक अपना नजरिया परिवर्तन अभ्यास करें और फिल्मी सितारे बात-बात पर साथी कलाकारों को झप्पियां पाने की आदत का विसर्जन करें। सामाजिक दूरी तो कलाकार सह सकते हैं पर दर्शक की फिल्मों से दूरी न सही जाएगी।