कोरोना काल में बुजुर्गों की बेदखली
अनूप भटनागर

सरकार व चिकित्सा विशेषज्ञ सलाह दे रहे हैं कि बच्चे और बुजुर्ग घरों में ही रहें क्योंकि कोरोना संक्रमण की चपेट में उनके आने का खतरा सबसे ज्यादा है। लेकिन अपने ही देश में संपत्ति के लालच में बुजुर्गों को घरों से बेदखल कर उन्हें दर-दर भटकने के लिए बाध्य करने वाली खबरें भी सामने आ रही हैं। प्रशासन को चाहिए कि सबसे पहले तो ऐसे वरिष्ठ नागरिक के परिजनों के खिलाफ कार्रवाई करते हुए कानूनी प्रावधान के तहत उनके लिए तत्काल गुजारा भत्ता दिलाने की व्यवस्था करे।
सरकार कहती है कि ऐसे बुजुर्गों की शिकायतों की जांच करायी जा रही है और आरोप सही मिलने पर माता-पिता को घरों से बेदखल करने वाली संतानों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जायेगी। लेकिन सरकार का इस तरह का आश्वासन बुजुर्गों में विश्वास पैदा करने के लिए नाकाफी नजर आ रहा है। इसकी एक वजह ऐसी शिकायतों के निदान में लगने वाला लंबा समय है। इस दौरान ऐसे बुजुर्ग दंपति के पास रहने का भी कोई उचित ठिकाना नहीं होता है।
कोरोना काल के दौरान मुंबई के बांद्रा स्टेशन पर मिली 70 साल की लीलावती को उसके बेटे द्वारा कथित रूप से मारपीट कर सारा पैसा छीन लेने और फिर घर से बाहर निकाल देने की घटना हाल ही में सामने आयी थी। इसी तरह की एक अन्य घटना हाल ही में उ.प्र. के कानपुर जिले के पुखरायां से भी सुनने को मिली। खबरों के अनुसार 65 साल के बुजुर्ग कमलेश कुमार और उनकी पत्नी पुष्पलता को बेटे और बहू ने कथित रूप से मारपीट के बाद घर से बाहर निकाल दिया। इस दंपति का आरोप है कि कोरोना महामारी की वजह से जब लॉकडाउन हुआ तो उनका बेटा और बहू उनके पास रहने के लिए आये थे, लेकिन अब उन्होंने ही इस बुजुर्ग दंपति को कथित रूप से मारपीट कर घर से निकाल दिया।
इसी तरह की एक खबर बिहार के कंकरबाग के निवासी 87 वर्षीय पूर्व सरकारी कर्मचारी महेश कुमार श्रीवास्तव और उनकी पत्नी की है। इस दंपति का आरोप है कि उन्होंने दिल्ली में अपने बच्चों के पास रहने के लिए अपना मकान बेच दिया। बेटे की सलाह पर बेचे गये इस मकान का पैसा पुत्र ने लिया, लेकिन अब पता चला कि उनके बेटे ने यह मकान अपनी पत्नी के नाम कर दिया है। यह दंपति अब बिहार के मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक से मदद की गुहार लगा रहा है।
ये घटनायें हमारे समाज में तेजी से आ रही गिरावट को दर्शाती हैं, जिसमें माता-पिता द्वारा अपनी मेहनत से बनायी गयी संपत्ति को उनकी अपनी ही संतानें किसी न किसी तरह से हड़पने का प्रयास करती हैं। स्थिति यह हो गयी है कि आज कहीं बेटा अपनी मां को प्रताडि़त कर रहा है तो कहीं बेटा-बहू अपने माता-पिता का अपमान कर रहे हैं। यही नहीं, पोते द्वारा अपने दादा को ही लूटने की घटनायें भी सामने आ रही हैं। परिवारों में वृद्ध माता-पिता और दूसरे बुजुर्गों को बोझ समझा जाने लगा है। बुजुर्गों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार को देखते हुए ही 2007 में ‘माता-पिता तथा वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण और कल्याण कानून’ बनाया गया। लेकिन ऐसा लगता है कि इस कानून के बारे में अधिकतर लोगों को ज्यादा जानकारी नहीं है। जब बुजुर्ग माता-पिता मदद के लिए प्रशासन या वकील के पास पहुंचते हैं तो उन्हें इस कानून और इसके प्रावधानों का पता चलता है।
इस कानून के तहत वरिष्ठ नागरिक का परित्याग करना दंडनीय अपराध है। इस अपराध के लिए दोषी व्यक्ति को तीन माह की कैद तथा पांच हजार रुपये जुर्माने की सज़ा हो सकती है। वैसे तो इस कानून में भरण-पोषण अधिकरण और अपीली अधिकरण बनाने की व्यवस्था है। राज्यों के प्रत्येक उपमंडलों में एक या इससे अधिक भरण-पोषण अधिकरण गठित करने का प्रावधान है लेकिन आज भी कई राज्यों में ऐसे मामलों की सुनवाई के लिए पर्याप्त संख्या में अधिकरण ही नहीं हैं। इस तरह के अधिकरण में मामला पहुंचने पर 90 दिन के भीतर इसका निपटारा जरूरी है। ऐसा अधिकरण ऐसे वरिष्ठ नागरिक के भरण-पोषण के लिए उसके बच्चे या संबंधी से पीडि़त बुजुर्ग को 10 हजार रुपये प्रतिमाह देने का आदेश दे सकता है।
हालांकि, न्यायपालिका ने कई बार हस्तक्षेप किया है, लेकिन इसके बावजूद बुजुर्ग माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के प्रति दुर्व्यवहार की घटनाओं में कमी नहीं आ रही है। बुजुर्ग लोगों की दयनीय स्थिति को लेकर कांग्रेस के नेता और पूर्व मंत्री डॉ. अश्विनी कुमार ने शीर्ष अदालत में एक जनहित याचिका दायर की थी। इस याचिका पर न्यायालय ने 13 दिसंबर, 2018 को केन्द्र सरकार को कई निर्देश दिये थे। यही नहीं, न्यायालय ने कुछ बिन्दुओं पर सरकार से स्थिति रिपोर्ट भी मांगी थी लेकिन अपरिहार्य कारणों से पहले तो एक साल यह मामला सूचीबद्ध ही नहीं हुआ। लेकिन बाद इस पर तारीख लग गयी। अब इस पर जुलाई में आगे सुनवाई की उम्मीद है।
देश में वरिष्ठ नागरिकों के अनादर की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए न्यायालय चाहता है कि प्रत्येक जिले में वृद्धाश्रमों का निर्माण किया जाये, जहां परिवार द्वारा परित्याग किये गये वरिष्ठ नागरिक सम्मान के साथ अपनी जिंदगी गुजार सकें।