
कांग्रेस की कलह

राजस्थान कांग्रेस में विधानसभा चुनाव के बाद से शुरू हुई वर्चस्व की जंग आखिरकार राज्य के जमीन से जुड़े नेता सचिन पायलट के उपमुख्यमंत्री पद व पार्टी अध्यक्ष पद से हटने के रूप में समाप्त हुई। इसके बाद पहले बयान में उन्होंने कहा है कि ‘सच परेशान हो सकता है मगर पराजित नहीं।’ जो इस बात का परिचायक है कि वे पार्टी में लंबे समय से घुटन महसूस कर रहे थे। इस द्वंद्व की शुरुआत तब शुरू हो गई थी जब पार्टी अध्यक्ष के रूप में की गई कड़ी मेहनत से पार्टी सत्ता में आई मगर पार्टी ने उन्हें राज्य की बागडोर नहीं सौंपी। कहते हैं कि राहुल गांधी ने उनसे कहा था कि राज्य में पार्टी को जितवाओ, फिर नेतृत्व मिलेगा। लेकिन केंद्रीय नेतृत्व ने अनुभवी व पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को बागडोर सौंपी और सचिन पायलट को उपमुख्यमंत्री बनाया। लेकिन वर्चस्व की जंग भीतर-भीतर जारी रही। हो सकता है कि इस वर्चस्व की जंग के सार्वजनिक होने के बहुत से कारण हों, जैसा कि सचिन कहते रहे हैं कि नियुक्तियों में उपमुख्यमंत्री के रूप में मेरी अनदेखी हो रही है, मगर इसका तात्कालिक कारण राज्य के स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप यानी एसओजी की ओर से सरकार को अस्थिर करने की कोशिश के बाबत पूछताछ के लिये उपमुख्यमंत्री को नोटिस जारी होना है। जाहिर है, इसके बाद अलगाव की पटकथा सामने आनी ही थी। सचिन का दिल्ली की ओर कूच, मानेसर के एक होटल में रुकना, कांग्रेस हाईकमान की तरफ से मान-मनौव्वल की कोशिश और फिर अशोक गहलोत द्वारा विधायकों की गिनती के लिये बैठकों का दौर सामने आया। कहने को तो मुख्यमंत्री दावा कर रहे हैं कि उनकी सरकार सुरक्षित है, उनके पास बहुमत है लेकिन राज्य में सरकार की बुनियाद तो निश्चित रूप से कमजोर हो गई है। विधायकों के संख्या बल की दावेदारी के बीच वास्तविक स्थिति तो फ्लोर टेस्ट के बाद साफ होगी, मगर निर्दलीय व अन्य दलों के विधायकों की संख्या में कोई हेरफेर सरकार के लिये मुसीबत जरूर खड़ी कर सकती है।
बहरहाल, इस घटनाक्रम के दौरान भाजपा की सक्रियता मध्य प्रदेश में कांग्रेस की फूट का लाभ उठाने जैसी नजर नहीं आयी, मगर पार्टी ने सचिन पायलट के पक्ष में सहानुभूति जतायी। उनके लिये दरवाजे खुले होने की बात भी कही। इस मौके के बहाने कांग्रेस में परिवारवाद और जनाधार वाले नेताओं की अनदेखी जैसे आरोप भी जड़े। मुख्यमंत्री भाजपा पर लगातार सरकार को अस्थिर करने के आरोप लगाते रहे हैं। इसी आरोप के साथ दो लोगों की गिरफ्तारी भी हुई, मगर भाजपा ने उनके पार्टी में होने से इनकार किया। बहरहाल, मंगलवार को हुई कांग्रेस विधायकों की बैठक में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 102 विधायकों के सरकार के साथ होने का दावा किया। सचिन का साथ देने वाले दो मंत्रियों व पार्टी सचेतक को हटाने के साथ नये पार्टी अध्यक्ष की भी घोषणा कर दी। साथ ही सात निर्दलीयों व पांच?छोटी पार्टियों, जिसमें सीपीएम, आरएलडी व बीटीपी शामिल हैं, के विधायकों के समर्थन का भी दावा किया। जहां तक भाजपा द्वारा कांग्रेस के संकट को अवसर में बदलने से परहेज का सवाल है तो कमोबेश राजस्थान में मध्य प्रदेश जैसी स्थिति नहीं है।?राज्य में पार्टी के विधायकों की संख्या 2018 के चुनाव में 73 पर सिमट गई थी, जो सचिन समर्थक विधायकों को साथ लेकर भी सरकार बनाने के लिये जरूरी आंकड़े 101 को पूरा नहीं करता। संभव है, बीजेपी सचिन पायलट के संपर्क में हो, यहां सवाल लेन-देन का भी है। सचिन राज्य का मुख्यमंत्री बनना चाहेंगे, लेकिन मौजूदा हालात में यह कोशिश संख्या बल के अभाव में पूरी होती नजर नहीं आती। बहरहाल मौजूदा घटनाक्रम कांग्रेस के लिये बड़ा सबक जरूर है कि जनाधार वाले युवा नेताओं का पार्टी से मोहभंग क्यों हो रहा है।?यह भी कि आलाकमान का तिलिस्म भी अब बीते दिनों की बात हो गया है क्योंकि राहुल-प्रियंका समेत तमाम शीर्ष नेताओं के प्रयासों के बावजूद सचिन पायलट टस से मस नहीं हुए।