करवट बदलता मौसम

जलवायु परिवर्तन संबंधी एक ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि 21वीं सदी समाप्त होते-होते भारत में गर्म दिन और गर्म रातों की संख्या 1976 से 2005 की अवधि के मुकाबले 55 से 70 फीसदी तक बढ़ जाएगी। यह पहला मौका है जब भारत सरकार के संस्थानों से जुड़े विशेषज्ञों ने भारत को केंद्र बनाकर जलवायु में बदलाव के पैटर्न को समझने की एक बड़ी कोशिश की है। अपने ढंग के इस अनूठे आकलन में कहा गया है कि सदी बीतने तक देश के औसत तापमान में 4.4 डिग्री सेल्सियस तक की बढ़ोतरी हो जाएगी।
समुद्र तल का स्तर भी तब तक 30 सेंटीमीटर बढ़ जाने का अनुमान है। इस स्टडी की सबसे अच्छी बात यही है कि अगले अस्सी वर्षों में देश का मौसम किस तरह करवट बदलने वाला है, इस अनुभूति तक इसने हमें सटीक ब्यौरों के साथ पहुंचाया है। ऐसे अध्ययनों के फायदे अमूमन दो स्तरों पर देखे जाते हैं। एक तो यह कि इनके निष्कर्षों को ध्यान में रखते हुए घटनाओं के प्रवाह की दिशा जहां तक हो सके मोडऩे की कोशिश की जाए, या कम से कम उसकी गति को कम करने का प्रयास किया जाए।
क्लाइमेट चेंज की यह समस्या वैश्विक है और दुनिया के तमाम देश अपने-अपने ढंग से इसमें योगदान कर रहे हैं, इसलिए भारत अकेला इस मामले में कुछ खास नहीं कर सकता। ऐसे में इस मोर्चे पर जितना संभव हो, प्रयास करते हुए हमें अपना ध्यान दूसरे मोर्चे पर लगाना पड़ेगा। यह दूसरा मोर्चा है इन बदलावों को अवश्यंभावी मानते हुए अपनी जरूरतों और आपूर्ति को उनके अनुरूप ढालने की कोशिश करना। इस संदर्भ में भारत के लिए सबसे अच्छी बात यह है कि हमारे यहां ठंडे और गर्म, दोनों तरह के इलाके हैं और अलग-अलग तापमान वाली फसलें उगाने का अच्छा-खासा तजुर्बा हमारे किसानों के पास है।
आगे की जिम्मेदारी काफी हद तक कृषि वैज्ञानिकों पर आती है कि वे गेहूं जैसे कम तापमान और अधिक पानी चाहने वाले अनाज की ऐसी किस्में विकसित करें जो अधिक तापमान में कम पानी के सहारे जीवित रह सकें, या फिर पुराने, रफ-टफ मोटे अनाजों की ऐसी किस्मों पर काम करें जो अभी की स्वाद ग्रंथियों के ज्यादा अनुकूल हो। मौसम के इन उतार-चढ़ावों से घबराने के बजाय यह देखना ज्यादा उपयोगी होगा कि इनके नुकसान साथ में कुछ फायदे भी लाते हैं। जैसे, बार-बार आने वाले वेस्टर्न डिस्टर्बेंस के चलते इस बार जहां हमें बेमौसम आंधी-पानी का झटका कुछ ज्यादा ही झेलना पड़ा, वहीं इनके चलते जमीन में नमी बनी रही तो किसानों ने खरीफ की बुआई पिछले साल की अब तक की अवधि के मुकाबले 13.2 फीसदी ज्यादा कर दी। इसके चलते कम से कम कृषि क्षेत्र में हम लॉकडाउन के दुष्प्रभावों से बचे रहने की उम्मीद कर सकते हैं।