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एमपी के कर्मचारियों का डीए 4 प्रतिशत बढ़ेगा

दिवाली पर 7.5 लाख कर्मचारियों को एरियर देने की भी तैयारी डीए


भोपाल, (निप्र)।मध्यप्रदेश के 7.50 लाख कर्मचारियों की ये दिवाली धूम-धड़ाके से मनेगी। राज्य सराकर 4त्न महंगाई भत्ता (ष्ठ्र) देने की तैयारी कर रही है। यानी 12 महीने में रूक्क के वर्कर्स का ष्ठ्र 22त्न से बढ़कर 38त्न हो जाएगा। केंद्र सरकार ने भी इसी महीने अपने वर्कर्स का ष्ठ्र 4त्न बढ़ाकर 38त्न कर दिया है।

बढ़े हुए ष्ठ्र का भुगतान अक्टूबर पेड टू नवंबर की सैलरी में किया जाएगा, लेकिन दिवाली 24 अक्टूबर को है, इसलिए यह भी विचार किया जा रहा है कि कर्मचारियों को बढ़े हुए ष्ठ्र का भुगतान त्योहार के पहले यानी अक्टूबर में ही कर दिया जाए। अंतिम निर्णय 11 अक्टूबर के बाद लिया जाना है।

4 प्रतिशत ष्ठ्र की बढ़ोतरी होने पर कर्मचारियों का महंगाई भत्ता 34 से बढ़कर 38 प्रतिशत हो जाएगा। इसमें कर्मचारियों को हर महीने 620 रुपए और अफसरों को 8558 रुपए तक का फायदा होगा। साथ ही 3 महीने के एरियर की कर्मचारियों की न्यूनतम राशि 1860 रुपए और अधिकतम अफसरों की 34232 रुपए उनके त्रक्कस्न (जनरल प्रोविडेंट फंड) अकाउंट में डाली जा सकती है।

ष्ठ्र की बढ़ोतरी होने पर इस वित्तीय वर्ष में यानी अक्टूबर से मार्च 2023 के बीच 700 करोड़ रुपए का अतिरिक्त भार आएगा। यानी हर महीने 104 करोड़ रुपए का अतिरिक्त भार आएगा। साथ ही 1 जुलाई से 30 सितंबर तक के एरियर देने पर 312 करोड़ रुपए एकमुश्त खर्च करने होंगे। चार साल बाद ष्ठ्र का एरियर दिए जाने को लेकर हिसाब-किताब लगाया जाया जा रहा है, क्योंकि कोरोना महामारी के बाद से अभी तक पिछले 26 महीनों में बढ़े हुए महंगाई भत्ते का एरियर नहीं दिया गया है।

इस बार दिवाली और प्रदेश का स्थापना दिवस 1 नवंबर को होने की वजह से 1 जुलाई से ष्ठ्र का भुगतान किया जा सकता है। 3 महीने के एरियर की राशि कर्मचारियों को कैश दे दी जाए या उनके त्रक्कस्न अकाउंट में डाल दी जाए, इस बारे में विचार किया जा रहा है।

पेंशनर्स के ष्ठक्र में ये है दिक्कत

प्रदेश में 4.75 लाख पेंशनर्स की महंगाई राहत (ष्ठक्र) बढ़ाने में धारा 49 दिक्कत बनी हुई है। इसमें पेंशनर्स के ष्ठक्र बढ़ाने के मामले में मप्र को छत्तीसगढ़ से वित्तीय सहमति लेना जरूरी है। इसकी वजह राज्य पुनर्गठन अधिनियम की धारा 49 संसद के द्वारा पारित है। इसमें कहा गया है कि मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ दोनों राज्यों में परस्पर वित्तीय मामलों में सहमति होना जरूरी है। इसी के अनुसार मप्र और छत्तीसगढ़ का बंटवारा साल 2000 में आबादी के हिसाब से हुआ, जिसमें 76 प्रतिशत हिस्सेदारी मप्र की और 24 प्रतिशत छत्तीसगढ़ की है। इस धारा को खत्म किए जाने के लिए दोनों राज्यों की सहमति के बाद केंद्र की अनुमति जरूरी है, जो दोनों राज्यों की पेंशनर्स की दिक्कतों को देखते हुए दृढ़ इच्छा शक्ति पर निर्भर है।