आंकड़ों की कला और कोरोना की कलाबाजी
आलोक पुराणिक

जी वह हो गया और पता ही न चला, बाद में सरकार ने बताया कि हो गया जी, हो गया।
जी ऐसा तो हमने सुना है विकास के बारे में। जनता कहती है कि न हुआ, सरकार बताती है कि बहुत हो गया, एकदम हो गया, झक्काटे से हो गया। आपको पता ही न चला हो गया, पक्का हो गया जी।
दिल्ली में करीब 40 लाख लोगों को कोरोना संक्रमण हो गया, पता ही न चला, बंदा काम पर लगा रहा, संक्रमण आकर निकल गया। बंदा काम ही करता रह गया। सरकार ने बताया कि हमने सर्वेक्षण कराके पता लगाया कि कोरोना हो गया, आपको हुआ था, आपको हुआ था।
जनता परेशान है, अस्पताल जाओ तो दाखिला नहीं मिलता। डाक्टर सीधे मुंह बात नहीं करते। पर अखबार में हुक्मरानों के फोटू छप रहे हैं, आत्म-बधाई देते हुए, सब ठीक हो गया, जी हम कोरोना वारियर, कोरोना को निपटा दिया जी। कोरोना से संघर्ष चल रहा है। आम आदमी एंबुलेंस में जीवन से संघर्ष कर रहा है, साहब लोग फोटो लगाकर अखबारों में कोरोना से संघर्ष में कामयाब हो चुके हैं। सबके अपने-अपने कोरोना हैं। किसी को एक और फोटू छपवाने का मौका कोरोना दे देता है, किसी का फोटू घर में रख दिया जाता है, माला टंगी होती है। घरवाले बताते हैं—जी चार अस्पतालों में भटके, किसी ने दाखिला न दिया।
इश्तिहारों की दुनिया में सब चकाचक है, सब हो गया है। एकदम फिट हो गया है। कोई दिक्कत नहीं है।
आम आदमी की दुनिया इतनी चकाचक नहीं है।
दिल्ली में चालीस लाख लोगों को हुआ, पता न चला। पता चल जाता तो और ज्यादा आफत हो जाती। कोरोना पॉजिटिव है, यह सुनकर