आज कथा के अंतिम दिन किया जाएगा भक्त सुदामा चरित्र का वर्णन

सीहोर ( निप्र)। भगवान के पास भक्त जिस भाव से आता है तो उसकी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। भगवान श्रीकृष्ण और माता रुक्मिणी का विवाह प्रेम और आदर्श का प्रतीक है और भगवान ने श्रीकृष्ण अवतार में जहां एक तरफ गोपियों का चीर चुराकर उन्हें भक्ति और प्रेम की शिक्षा दी, वहीं उन्होंने द्रोपदी का चीर बढ़ाकर उसकी लाज रखी थी। उक्त विचार शहर के नेहरु कालोनी में जारी सात दिवसीय भागवत कथा के छठवे दिन कपिल महाराज ने व्यक्त किए। इस मौके पर बुधवार को भगवान श्री कृष्ण और माता रुकमणी का विवाह का वर्णन किया।
उन्होंने कहा कि कथा के भक्ति रस में डूबने वाले को भक्ति रूपी मणि का उपहार मिलता है। जो कथा हमारे जड़वत जीवन में चैतन्य का संचार करे वहीं श्रीमदभागवत कथा की गाथा है। पापनाशिनी, मोक्ष दायिनी, भवभयहारिणी, इस भागवत कथा को केवल मृत्युलोक में ही पाना संभव है। कथा के श्रवण से भक्त व भगवान के बीच की दूरी कम होती है। उन्होंने कथा के दौरान भक्ति के वास्तविक अर्थ से परिचय करवाते हुए कहा कि भक्ति और विभक्ति दो शब्दों से जुड़ा हुआ है। आज इंसान प्रभु से विभक्त होने के कारण ही दुखी है। भक्ति का अर्थ ही परमात्मा से जुड़ जाना और यही सच्चा धर्म है। प्रभु से निरंतर दूरी ही मनुष्य के दुखों का कारण बन रहा है। वह मोह माया में इस कदर उलझ गया है कि उसे भगवान का ध्यान नहीं है। इसलिए उसे दुखों ने घेर लिया है।
भगवान श्रीकृष्ण और माता रुकमणी का विवाह दिव्य ह
कपिल महाराज ने कहा कि भगवान जब तक जीव आत्मा परमात्मा के बीच जो माया रूपी सूक्ष्म अवतरण है जब तक भगवान उस माया का चीर हरण नहीं करते तब तक महारास में प्रवेश नहीं मिलता और भगवान की महारस की लीला ही जीवन में कृष्णा तत्व का प्राकट्य करती है। आचार्य श्री शास्त्री ने साथ ही भगवान की कथा के माध्यम से समझाया गया की जब जब पृथ्वी पर पाप बढ़ जाता है और कंस जैसे दुष्ट का आधिपत्य हो जाता है तब भगवान ही अवतार लेके इन दुष्टो का संहार कर धर्म की स्थापना करते है। भगवान श्रीकृष्ण और माता रुकमणी के विवाह का वर्णन किया गया। भगवान श्रीकृष्ण और माता रुकमणी का विवाह दिव्य है। रुक्मिणी ने विवाह से पूर्व ही भगवान श्रीकृष्ण को मन से पति मान लिया था, इसलिए उनका हरण नहीं हुआ, बल्कि वे स्वयं उनके साथ गई थी। अभिमानी रुक्मिणी के भाई रुक्मि ने जब भगवान को रोकने का प्रयास किया तो कृष्ण ने उसका दंभ चूर कर दिया था। जो भक्त भगवान को मन से अपना मानते हैं, भगवान स्वयं उन्हें सद्बुद्धि प्रदान करते हैं।