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आजीवन सहयोग निधि जुटाने में भाजपा सांसद, विधायकों और जिलाध्यक्षों के छूट रहे हैं पसीने

भोपाल, (आरएनएस)। भाजपा के जिलाध्यक्षों और पदाधिकारियों को आजीवन सहयोग निधि का लक्ष्य जुटाने में पसीने छूट रहे हैं। इस साल इस निधि के रूप में सौ करोड़ का लक्ष्य तय किया गया था, जो पिछले साल के लक्ष्य से पांच गुना ज्यादा है। इसे एक महीने में पूरा करना था पर छह महीने बीत जाने पर भी लक्ष्य पूरा नहीं हो पाया है और अब तक 49 करोड़ कीराशि ही एकत्रित हो पाई है। पार्टी ने अब सभी जिलाध्यक्षों से इसका हिसाब मांगा है। भाजपा में आजीवन सहयोग निधि की परम्परा पुरानी है। पार्टी इस चंदे से अपना खर्च चलाती है। मुख्यालय इसका उपयेाग पार्टी के पूर्णकालिकाकें और पदाधिकारियों के प्रयास से होता है। इसके अलावा प्रदेश, जिला और मंडलों में होने वाले कार्यक्रमों को खर्च भी इसी राशि से होता है। स्वर्गीय कुशाभाऊ ठाकरे ने यह परम्परा डाली थी। इसके पीछे पार्टी एक परिवार की सोच थी। पंडित दीनदयाल उपाध्याय की पुण्यतिथि 11 फरवरी से आजीवन सहयोग निधि अभियान की विधिवत शुरुआत होती है। इससे पहले जिलों में संग्रहण का लक्ष्य निर्धारित कर दिया जाता है। इसे समर्पण निधि का भी नाम दिया गया है। हर जिलों में जिलाध्यक्ष के नेतृत्व में संग्रहण का काम होता है और इसके लिए जिले में आजीवन सहयोग निधि का प्रभारी भी नियुक्त किया जाता है। इसमें पार्टी कार्यकर्ता और समान विचारधारा वाले लोगों से राशि ली जाती है। इस निधि के संग्रहण में सांसद और विधायकों का भी सहयोग लिया जाता है। इस साल पांच गुना बढ़ा दिया लक्ष्य : पिछले साल तक भाजपा आजीवन सहयोग निधि का लक्ष्य महज बीस करोड़ था इस बार संगठन नेताओं की बैठक में इसे सीधा पांच गुना कर दिया गया। यह निर्णय केरल जैसे राज्य से प्रेरणा लेकर लिया गया था। संगठन नेताओं का कहना था कि केरल में पार्टी का संगठन एमपी जैसा मजबूत नहीं है और वहां हमारी सरकार भी नहीं है फिर भी पिछले साल वहां से 35 करोड़ रुपए समर्पण निधि से आए थे। इस आधार पर मध्यप्रदेश में बीस करोड़ से बढ़ाकर सीधे सौ करोड़ का लक्ष्य ले लिया गया। इसके पहले लक्ष्य में पिछले साल की तुलना में महज दस फीसदी की बढ़ोतरी की जाती थी। समर्पण निधि में जिलों को जो लक्ष्य दिया जाता है। उसके मुकाबले जितनी राशि एकत्र होती है, उसका आधा हिस्सा प्रदेश अपने पास रखता है और आधा जिलों को दिया जाता है ताकि जिलों में होने वाले कार्यक्रमों और पदाधिकारियों का प्रयाव खर्च निकल सके। पूर्व में आजीवन सहयोग निधि की 50 फीसदी राशि केन्द्रीय संगठन को भेजी जाती थी और पचास फीसदी प्रदेश संगठन के पास रहती थी जब नितिन गडकरी अध्यक्ष बने तो उन्होंने व्यवस्था में बदलाव करते हुए 25 फीसदी राशि केन्द्रीय संगठन और 25 फीसदी राशि प्रदेश और इतनी ही जिला और मंडल में देने की नई व्यस्था दी। सूत्रों की मानें तो अब भाजपा का राष्ट्रीय मुख्यालय प्रदेश संगठन से यह निधि नहीं लेता और प्रदेश जिला संगठन का ही इस अधिकार होता है। तीन बार बढ़ चुका है समय : संगठन सूत्रों की मानें तो अब तक तीन बार आजीवन सहयोग निधि की तारीख बढ़ाई जा चुकी है पर जिलाध्यक्ष हर बार समय मांग रहे हैं। आजीवन सहयोग निधि अभियान 11 फरवरी से शुरु हुआ था और जिलों को सात दिनों के अंदर टारगेट पूरा करना था फिर इसे एक महीने कर दिया गया था और 11 मार्च तक सभी जिलों को टारगेट पूरा करने को कहा गया था पर जिलों ने टारगेट ज्यादा बताते हुए समय मांगा। इसके बाद से तीन बार समय प्रदेश संगठन बढ़ा चुका है पर अब वह और समय बढ़ाने के पक्ष में नहीं हैं। मालवा की स्थिति ठीक, विंध्य ग्वालियर-चंबल पिछड़े : बताया जाता है कि मालवा अंचल के जिलों की हालत आजीवन सहयोग निधि में बेहतर है और वे लक्ष्य का अस्सी से नब्बे फीसदी पूरा कर चुके हैं पर विंध्य और ग्वालियर चंबल अंचल में अभी निर्धारित लक्ष्य का तीस से चालीस फीसदी भी संग्रहण नहीं हो पाया है। भोपाल और होशंगाबाद संभाग में भी कई जिले अब तक लक्ष्य से आधी राशि भी संग्रहित नहीं कर पाए हैं।

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