अंकुश के लिए समाज भी भूमिका निभाये
अनूप भटनागर
देश में बलात्कार और यौन हिंसा जैसे जघन्य अपराधों में किशोरों की बढ़ती संलिप्तता चिंताजनक है। इस तरह के अपराध में आमतौर पर 16 से 18 साल आयु वर्ग के किशोर संलिप्त पाये जा रहे हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की ताजा रिपोर्ट के अनुसार 2017 में तीन हजार से भी ज्यादा किशोरों के खिलाफ बलात्कार और यौन हिंसा के अपराध दर्ज किये गये। यह स्थिति तब है जब किशोरों में इस तरह की बढ़ती प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने के लिए देश में किशोर न्याय कानून में कठोर प्रावधान किये जा चुके हैं।
किशोर न्याय (देखभाल और संरक्षण) कानून 2015 में 16 से 18 वर्ष की आयु वर्ग के किशोरों में विभेद करते हुए एक श्रेणी बनायी गयी है, जिन पर न्यूनतम सात साल की सजा के दंडनीय अपराध करने के लिए वयस्क आरोपी की तरह मुकदमा चलाया जा सकता है। दिसंबर, 2012 में निर्भया सामूहिक बलात्कार और हत्याकांड, मुंबई का शक्ति मिल सामूहिक बलात्कार कांड और राजधानी में एक चिकित्सक पर तेजाब के हमले जैसे कई मामलों में नाबालिगों की संलिप्तता के मद्देनजर आरोपी नाबालिग पर वयस्क आरोपी को भारतीय दंड संहिता के दायरे में लाने की मांग लगातार उठी थी।
संसद की स्थाई समिति में मंत्रणा के बाद संसद ने किशोर न्याय कानून में संशोधन को मंजूरी दी थी। इसके बाद, इस कानून की धारा 15 में तीन आधार बनाये गये, जिसके अंतर्गत किशोर न्याय बोर्ड को प्रारंभिक आकलन में यह निर्धारित करना है कि क्या किशोर पर वयस्क के रूप में मुकदमा चलना चाहिए या नहीं। किसी किशोर पर वयस्क आरोपी के रूप में मुकदमा चलाने के बारे में बोर्ड ही अंतिम निर्णय करेगा। सामान्यतया, किशोर न्याय कानून के तहत किसी भी अपराध के लिए किशोर को अधिकतम तीन साल तक सुधारगृह में रखा जा सकता है।
अपराध रिकार्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार 2017 में 40,420 से अधिक किशोर तरह तरह के अपराधों में संलिप्त थे। इनमें 72 प्रतिशत 16 से 18 साल की आयु के किशोर थे। इस रिपोर्ट के अनुसार किशोरों की संलिप्तता वाले अपराधों की संख्या 2016 में 35,849 और 2015 में 33,433 थी। आंकडों के अनुसार 2013 में 2012 की तुलना में महिलाओं के शीलभंग के प्रयास में संलिप्त किशोरों की संख्या में 132 वृद्धि हुई थी।
बाल अधिकारों की रक्षा से जुड़े एक संगठन का मानना है कि इसे अलग से देखने की बजाय हमारे समाज में ही यौन हिंसा के अपराधों की स्थिति के साथ जोडक़र देखना होगा। किशोर न्याय कानून 2015 में संशोधन से पहले जघन्य अपराधों में नाबालिगों की बढ़ती संलिप्तता लगातार चिंता का विषय बना रहा था। एक अवसर तो उच्चतम न्यायालय ने भी बलात्कार, डकैती और हत्या जैसे मामलों में नाबालिग की स्थिति पर विचार करने पर जोर दिया था। न्यायालय का मत था कि वैसे तो ऐसी कई परिस्थितियां हो सकती हैं, जिसमें नाबालिग को अपने कृत्य के परिणाम का अहसास नहीं हो, लेकिन बलात्कार, हत्या, अपहरण और डकैती जैसे जघन्य अपराध में संलिप्त किशोरों के बारे में यह मानना कठिन होगा कि वे इसके नतीजे नहीं जानते होंगे।
आखिर किशोर न्याय कानून 2015 में संशोधन के बाबजूद बलात्कार और यौन हिंसा जैसे संगीन अपराधों में किशोरों की बढ़ती संलिप्तता पर अंकुश कैसे पाया जाये आखिर सूचना क्रांति के इस युग में इंटरनेट की ऐसे अपराधों में क्या भूमिका है और इसके माध्यम से किशोरों तक पहुंच रही यौन सामग्री को कैसे रोका जाये
एक गैर सरकारी संगठन ने इंटरनेट पर उपलब्ध अश्लील सामग्री सहजता से किशोर वर्ग के बीच पहुंचने की ओर उच्चतम न्यायालय का भी ध्यान आकर्षित किया था। इस मामले में न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद हालांकि सहजता से अश्लील सामग्री मुहैया कराने वाली वेबसाइट पर प्रतिबंध लगाया गया है लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। बलात्कार, बलात्कार के प्रयास और इसी तरह के दूसरे यौन अपराधों से किशारों को दूर रखने के लिए अभी और भी सार्थक तथा कारगर उपाय करने की आवश्यकता है।
बलात्कार और यौन हिंसा के अपराधों में तेजी से हो रही वृद्धि से यही पता चलता है कि हमारे समाज में सब कुछ ठीक नहीं है। पुलिस और प्रशासन के साथ ही समाजसेवियों, राजनीतिक दलों और महिला संगठनों को ऐसे अपराधों पर अंकुश पाने तथा इस तरह की दरिंदगी की ओर झुकाव रखने वाले किशोरों की पहचान करके उनमें सुधार के लिए युद्धस्तर पर प्रयास करने की आवश्यकता है। इसके लिये हमें भी मिलकर प्रयास करने होंगे।