असम में एनआरसी विवाद, उलझनें घटाई जाएं
असम में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) की अंतिम सूची जारी किए जाने के बाद नागरिकता के सवाल पर उलझन और बढ़ गई है। शायद ही कोई इस सूची से संतुष्ट हुआ हो। आसू (ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन) ने, जो इस मामले में एक पार्टी रहा है, इस पर गहरी निराशा जताते हुए सुप्रीम कोर्ट जाने की बात कही है। राज्य में विपक्ष ही नहीं खुद सत्ता पक्ष के लोगों को भी इसमें अपनाई गई प्रक्रिया पर गहरी आपत्ति है। असम के मंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने कहा है कि बीजेपी राज्य के कुछ हिस्सों में सूची के पुनर्मूल्यांकन के लिए फिर से सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगी।
सरमा की शिकायत है कि हिंदू प्रवासियों को सूची से बाहर क्यों किया गया, जबकि अन्य दलों का कहना है कि राज्य में पुश्तैनी तौर से रह रहे कई मुसलमानों को सूची से बाहर रखा गया है। उनका यह भी कहना है कि कुछ गरीब लोग सिर्फ इसलिए सूची से बाहर कर दिए गए क्योंकि उनके पास वाजिब कागजात नहीं हैं। सीपीआई ने तो इस पर सर्वदलीय बैठक बुलाने की मांग कर दी है। यही नहीं, बिहार और बंगाल से जेडीयू और टीएमसी ने भी इस पर सवाल उठाया है।पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी का कहना है कि बंगालियों को इरादतन इस सूची से बाहर रखा जा रहा है।
एनआरसी की अंतिम सूची के अनुसार 19,06,657 लोगों को बाहरी माना गया है, जो फॉरेन ट्रिब्यूनल में अपील कर सकते हैं। सरकार ने अपील दायर करने की समय सीमा 60 से बढ़ाकर 120 दिन कर दी है। किसी के भारतीय नागरिक होने या न होने का निर्णय ट्रिब्यूनल ही करेगा। उसके निर्णय से असंतुष्ट होने पर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट जाने का विकल्प भी मौजूद रहेगा। सबसे बड़ी बात यह कि बाहर छूटे लोगों की स्थिति पर संशय दूर करते हुए विदेश मंत्रालय ने रविवार को कहा कि इससे कोई व्यक्ति 'राष्ट्र विहीनÓ या 'विदेशीÓ नहीं हो जाएगा। जिनके नाम अंतिम सूची में नहीं हैं, उन्हें हिरासत में नहीं लिया जाएगा और कानून के तहत उपलब्ध सभी विकल्पों पर विचार होने तक उन्हें सारे अधिकार पहले की ही तरह हासिल रहेंगे।
ऐसे किसी भी अधिकार से उन्हें वंचित नहीं किया जाएगा। सवाल है कि इस पूरी कवायद से निकला क्या? क्या सूची से लगता है कि असम में विदेशी घुसपैठ कोई बड़ा मुद्दा है? इधर एक राज्य में मसला सुलझा नहीं, उधर कुछ लोग एनआरसी को पूरे देश में लागू करने की बात करने लगे हैं। सियासी लाभ लेने की मंशा के सिवाय इसके पीछे और क्या हो सकता है? असम के लिए फिलहाल सबसे बड़ी चिंता का विषय यह है कि स्वार्थी तत्व कहीं एक तबके की अस्पष्ट नागरिकता का बेजा फायदा न उठाने लगें। ऐसे में एनआरसी को राष्ट्रीय मुद्दा बनाना एक उलझी गांठ को और ज्यादा उलझाने जैसा ही होगा।