top of page

अमानवीय उपचार


जब देश की शीर्ष अदालत को स्वत: संज्ञान लेते हुए कहना पड़े कि सरकारी अस्पतालों में मरीजों के साथ जानवरों से बदतर सलूक हो रहा है तो कुछ कहने-सुनने को शेष नहीं रह जाता है। शुक्रवार को मीडिया रिपोर्टों का संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कोविड-19 के उपचार एवं चिकित्सालयों में कोरोना संक्रमित शवों के साथ गरिमा के विरुद्ध व्यवहार की बात करते हुए कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि शव कूड़े में बरामद हो रहे हैं। मामले में खुद संज्ञान लेते हुए जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एम.आर. शाह की पीठ ने दिल्ली सरकार को फटकार लगाते हुए स्थिति को दुर्भाग्यपूर्ण बताया। यहां तक कि अस्पतालों में शवों की उचित देखभाल नहीं की जा रही है, उनके परिवारों को समय रहते सूचित नहीं किया जा रहा है। कई बार परिवार के लोग अपनों के अंतिम संस्कार से भी वंचित रह जाते हैं। कोर्ट ने कहा कि डॉक्टरों को कई माह से वेतन न मिलने के बाबत कोर्ट को दखल देने की जरूरत क्यों पड़ रही है, सरकारों ने इस पर समय रहते ध्यान क्यों नहीं दिया। कोर्ट ने अस्पतालों में मरीजों के उपचार में आपराधिक लापरवाही को दुर्भाग्यपूर्ण बताया। कोर्ट ने इस बाबत केंद्र सरकार को भी नोटिस दिया है। कोर्ट ने दिल्ली सरकार को आड़े हाथों लेते हुए पूछा कि जब दिल्ली में कोरोना संक्रमितों की संख्या लगातार बढ़ रही है तो संक्रमितों की टेस्टिंग में कमी क्यों आई है। शीर्ष अदालत ने कोरोना काल में सरकारी अस्पतालों की बदहाली पर क्षोभ जताते हुए तत्काल सुधार की बात कही। कोर्ट ने दिल्ली के एल.एन.जे.पी. अस्पताल को भी उपचार में बदहाली पर नोटिस जारी किया। इसके अलावा कोर्ट ने मुख्य सचिव को मरीजों की प्रबंधन प्रणाली का जायजा लेने, कर्मचारियों व रोगियों के बारे में स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया।

दरअसल, कोरोना संक्रमितों की बेकद्री की खबरें सारे देश से आ रही हैं। अब चाहे मुंबई व तमिलनाडु में शवों के लापता होने का मामला हो, उपचार में आपराधिक लापरवाही की खबरें लगातार आ रही हैं। इस घटनाक्रम ने सार्वजनिक स्वास्थ्यतंत्र की नाकामियों की पोल खोल दी है। हरियाणा में एक महिला का शव सिर्फ इसलिये पांच दिन तक शवगृह में रखा रहा क्योंकि डॉक्टर उसकी कोरोना जांच रिपोर्ट लैब को भेजना ही भूल गये। महाराष्ट्र के जलगांव में एक परिवार को अपने सदस्यों को सरकारी अस्पताल के चिकित्सकों की लापरवाही के चलते खोना पड़ा। अस्पताल के पांच अधिकारियों को निलंबित किया गया है और मामले की जांच हो रही है। महाराष्ट्र में एक कोरोना पीडि़त का शव रेल की पटरियों पर मिला। वहीं एक सप्ताह से लापता वृद्ध महिला का शव सड़ी-गली अवस्था में अस्पताल के शौचालय से बरामद हुआ। यह कैसी बदहाली है कि मरीजों को लावारिस हालत में छोड़ दिया जाता है। अस्पताल में उन्हें कैसे उपचार मिल रहा होगा, इसका अंदाजा इन घटनाओं से लगाया जा सकता है। वहीं दूसरी ओर निजी अस्पतालों का यह आलम है कि वे मरीजों को उलटे उस्तरे से मूंड रहे हैं। नोएडा में निजी लैब द्वारा 35 स्वस्थ लोगों को कोरोना संक्रमित बताकर संक्रमितों के साथ आइसोलेशन वार्ड में रखा गया। सरकारी लैब की जांच में उन्हें कोरोना नेगेटिव पाया गया। इस आपराधिक लापरवाही की जवाबदेही तय होनी चाहिए। आम दिनों में भी मरीज सरकारी अस्पतालों में उपचार के लिए धक्के खाते रहते हैं तो ऐसे में जब कोरोना संक्रमण का कोई कारगर उपचार मौजूद ही नहीं है तो फिर उपचार कैसा मिल रहा होगा, उसकी कल्पना ही की जा सकती है। इस संकट का सबसे बड़ा सबक यही है कि हम अपनी सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली को फिर से दुरुस्त करें। निस्संदेह प्रतिबंधों पर ढील के बाद आवाजाही में तेजी आई और संक्रमण भी उतनी तेजी से बढ़ा है। यही वजह है चिकित्सातंत्र की नाकामियों के चलते कई राज्यों में फिर से सख्त लॉकडाउन की बात हो रही है।

2 views0 comments