अदालती दखल से आधी दुनिया को पूरा हक

दीपिका अरोड़ा
भारतीय सेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन प्रदान करने हेतु रक्षा मंत्रालय द्वारा आधिकारिक तौर पर मंजूरी दे दी गई है। 23 जुलाई को रक्षा मंत्रालय की ओर से जारी किए गए स्वीकृति पत्र के अनुसार अब सेना में विभिन्न शीर्ष पदों पर महिलाओं की तैनाती संभव हो पाएगी। उल्लेखनीय है कि उच्चतम न्यायालय ने 17 फरवरी, 2020 को एक याचिका पर सुनवाई के पश्चात महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन एवं कमांड पोस्ट दिए जाने की वकालत की थी तथा आदेश लागू करने के लिए तीन माह का समय निर्धारित किया था। मामला पुन: उठाए जाने पर केंद्र सरकार को एक माह की मोहलत दी गई थी। इससे पहले सेना में महिलाओं की भर्ती शार्ट सर्विस कमीशन (एस.एस.सी.) के माध्यम से ही होती थी। वे केवल 14 साल तक ही सेना में अपनी सेवाएं दे सकती थीं, तत्पश्चात उन्हें रिटायर कर दिया जाता था, जबकि सेना में नियमानुसार पेंशन पाने के लिए 20 साल तक नौकरी करना आवश्यक है।
वर्ष 1992 में एयरफोर्स में चयनित अनुपमा ने पहले पांच वर्ष की सर्विस के पश्चात इस भेदभाव के खिलाफ आवा•ज उठाई व तीन साल का एक्सटेंशन लिया। 2002 में अधिकारियों से कोई जवाब न मिलने पर वायुसेना प्रमुख को पत्र लिखा, पुन: कोई उत्तर न आने पर 2006 में कोर्ट में याचिका दर्ज की। 2008 में रिटायरमेंट के पश्चात भी उनका संघर्ष जारी रहा।
17 फरवरी, 2020 को सेना में तैनात 51 अफसरों की याचिका पर सुप्रीमकोर्ट द्वारा सरकार की सोच को रूढि़वादी एवं लैंगिक भेदभाव वाली करार देते हुए सेना में महिला अफसरों को कमांड पोस्टिंग देने का मार्ग प्रशस्त कर दिया गया। जस्टिस धनन्जय वाई. चन्द्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने शारीरिक सीमाओं और सामाजिक चलन को आधार बनाकर कमान पदों पर महिलाओं की नियुक्ति न करने वाली सरकार व सेना को फटकारा। सुप्रीमकोर्ट ने कहा कि हकीकत में समानता लाने के लिए सोच का बदलना जरूरी है। कमांड पोस्ट पर महिलाओं की नियुक्ति न होना संविधान के अनुच्छेद 14 के खिलाफ है।’ अपने आदेश में 11 महिला सैन्य अधिकारियों की राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उपलब्धियां गिनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार की यह सोच, कि महिलाएं सामाजिक दायित्वों के चलते खतरा झेलने में सक्षम नहीं हो सकतीं, महिलाओं के साथ-साथ सेना का भी अपमान है।’